Image Slider
Image 2 Image 2 Image 2
चंदौली

Chandauli News: निजीकरण के विरोध में विद्युत विभाग कर्मचारियों ने प्रान्तव्यापी सभाएं करते हुए “एक है तो सैफ है, बटेंगे तो कटेंगे” का नारा दिया

चंदौली: निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मचारियों ने निजीकरण का प्रस्ताव वापस लेने की माँग की। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति चंदौली के बैनर तले विद्युत विभाग कर्मचारियों ने निजीकरण का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश के सूबे के मुखिया के ही भाषा में “एक है तो सैफ है, बटेंगे तो कटेंगे” का नारा लगाया। कहा कि अरबों-खरबों रूपये की परिसंपत्तियों का मूल्यांकन कर उसे सार्वजनिक किया जाय और निजीकरण की किसी प्रक्रिया के पहले बिजली उपभोक्ताओं और कर्मचारियों की राय ली जाय।

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के बैनर तले आज प्रदेश के सभी जनपदों परियोजना मुख्यालयों और राजधानी लखनऊ में बिजली कर्मचारियों ने निजीकरण के विरोध में कार्यालय समय के उपरांत शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया। बिजली कर्मचारियों ने कहा कि बिजली के क्षेत्र में सबसे बड़े स्टेकहोल्डर बिजली के उपभोक्ता और बिजली के कर्मचारी है। अतः आम उपभोक्ताओं और कर्मचारियों की राय लिए बना निजीकरण की कोई प्रक्रिया शुरू न की जाए। साथ ही संघर्ष समिति ने मांग की है की अरबों-खरबों रूपए की बिजली की संपत्तियों को एक कमेटी बनाकर, जिसमें कर्मचारियों और उपभोक्ताओं के प्रतिनिधि भी हों, मूल्यांकन किया जाए और जब तक यह मूल्यांकन सार्वजनिक न हो तब तक निजीकरण की कोई प्रक्रिया शुरू करना संदेह के घेरे में होगा।

जनपद चंदौली के मुगलसराय गोधना मोड़ स्थित शनिवार को विद्युत वितरण मण्डल, कार्यालय में ध्यानाकर्षण सभा में बिजली कर्मी व अभियंता बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए। सभा को संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारीयों ने संबोधित किया। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि निजीकरण से कर्मचारियों की सेवा शर्तें तो प्रभावित होती ही हैं, कर्मचारियों के साथ ही सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव आम घरेलू उपभोक्ताओं, किसानों और गरीब उपभोक्ताओं पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि निजीकरण के उत्तर प्रदेश में आगरा और ग्रेटर नोएडा में किए गए विफल प्रयोगों की समीक्षा करना बहुत जरूरी है अन्यथा निजीकरण के नाम पर एक बार पुनः आम उपभोक्ता ठगा जाएगा। ग्रेटर नोएडा में करार के अनुसार निजी कंपनी को अपना विद्युत उत्पादन गृह स्थापित करना था जो उसने आज तक नहीं किया। यह भी समाचार आ रहे हैं की ग्रेटर नोएडा की कंपनी किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली देने के बजाय ज्यादा रूचि औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्र में बिजली देने में लेती है। स्वाभाविक है निजी कंपनी मुनाफे के लिए काम करती है जबकि सरकारी कंपनी सेवा के लिए काम करती है।

कहा कि आगरा में भी उपभोक्ताओं की बहुत शिकायतें हैं। इन सब का संज्ञान लिए बगैर उत्तर प्रदेश में कहीं और पर निजीकरण किया जाना कदापि उचित नहीं है। संघर्ष समिति ने यह भी कहा कि आगरा और केस्को दोनों के निजीकरण का एग्रीमेंट एक ही दिन हुआ था। आगरा टोरेंट कंपनी को दे दिया गया और केस्को आज भी सरकारी क्षेत्र में है। इनकी तुलना से स्वयं पता चल जाता है कि निजीकरण का प्रयोग विफल हो गया है। आगरा में टोरेंट कंपनी प्रति यूनिट 4 रूपए 25 पैसे पात्र कारपोरेशन को देती है। पावर कॉरपोरेशन यह बिजली रू0 05.55 प्रति यूनिट पर खरीदता है। इस प्रकार पिछले 14 साल में पावर कारपोरेशन को टोरेंट को लागत से कम मूल्य पर बिजली देने में 3000 करोड रूपए का घाटा हो चुका है।

दूसरी ओर केस्को में प्रति यूनिट राजस्व की वसूली रू 06.80 है। साफ हो जाता है कि निजीकरण का प्रयोग विफल हुआ है और इससे पावर कारपोरेशन का घाटा और बढ़ा है। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र का प्रयोग कानपुर में सीमित संसाधनों के बावजूद कहीं अधिक सफल रहा है। प्रदेश भर में हुई सभा में आज बिजली कर्मचारियों ने संकल्प लिया की प्रदेश की आम जनता की व्यापक हित में और कर्मचारियों के हित में बिजली का निजीकरण पूरी तरह अस्वीकार्य है और लोकतांत्रिक ढंग से इस निजीकरण को समाप्त करने हेतु सभी प्रयास किए जाएंगे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

You cannot copy content of this page