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अयोध्या

Ayodhya: सनातन संस्था का लेख, हरितालिका तीज व्रत का उद्देश्य एवं लाभ

रिपोर्टर: नरेन्द्र कुमार मौर्य

अयोध्या: 04/09/2024 चैत्रादि गणना अंतर्गत भाद्रपद छठा मास है। इस मास की पूर्णिमा के आसपास पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र आता है। इसीलिए इस मास को ‘भाद्रपद’ के नाम से जानते हैं। हरितालिका व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को किया जाता है। मां पार्वती इस व्रत की प्रधान देवता हैं। इस व्रत में उमा-महेश्वर की मूर्ति की स्थापना कर यथा विधि उनका पू्जन किया जाता है। कुछ प्रदेशों में देवता पूजन के साथ हवन भी किया जाता है, जिस में तिल एवं घी इत्यादि की आहुति देते हैं। इसी दिन ‘हरिकाली’, ‘हस्तगौरी’ एवं ‘कोटेश्वरी’ इत्यादि मां पार्वती के रूपों के व्रत भी होते हैं। विशेषकर स्त्रियां ही ये व्रत करती हैं।

हरितालिका व्रत का उद्देश्य एवं लाभ:

✓ मां पार्वती ने शिवजी को वर के रूप में प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया था। इसीलिए अनुरूप वर की प्राप्ति के लिए विवाह योग्य कन्याएं यह व्रत करती हैं, तो सुुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए सुहागन स्त्रियां भी यह व्रत करती हैं।

हरितालिका व्रत करने से होने वाले विविध लाभ:

. व्रत के दिन उपवास रखने के कारण देह पवित्र होती है।

. ब्रह्मांड में विद्यमान शिवतत्त्व, व्रतकर्ती की ओर आकृष्ट होते हैं।

. उसकी शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होने में सहायता होती है।. कठोर व्रत पालन से मृत्यु के उपरांत व्रतकर्ती को शिवलोक में स्थान प्राप्त होता है।

इस प्रकार यह व्रत इस जन्म में सांसारिक विघ्न दूर करने वाला एवं मृत्यु के उपरांत लाभ प्रदान करने वाला है।

हरितालिका व्रतांतर्गत देवतापूजन का पूर्वायोजन एवं प्रत्यक्ष पूजन

✓ प्रातःकाल मंगलस्नान कर पार्वती एवं उसकी सखी की मूर्ति लाकर शिवलिंगसहित उनकी पूजा की जाती है। रात को जागरण करते हैं और अगले दिन उत्तर पूजा (समापन पूजा) कर शिवलिंग तथा मूर्ति विसर्जित करते हैं।

✓ सनातन हिंदु धर्म में प्रत्येक मास का विशेष महत्त्व है। साथ ही प्रत्येक मास में वातावरण में होनेवाले परिवर्तन का परिणाम सृष्टि पर भी होता है। इसका विचार कर शास्त्रों में प्रत्येक मास में कुछ विशेष धार्मिक कृत्य करने के विधान बताए गए हैं। इनमें कुछ त्यौहार, कुछ उत्सव, तो कुछ व्रत भी अंतर्भूत हैं। इनका अध्यात्म शास्त्रीय महत्त्व एवं आधार समझने से इनके प्रति श्रद्धा बढने में सहायता होती है। प्रत्येक व्रत से संबंधित विशेष धार्मिक विधि, उपवास, संकल्प इत्यादि आचार होते हैं।

✓ देवतापूजन के स्थान को स्वच्छ कर रंगोली इत्यादि से सुशोभित करते हैं। चौकी के दोनों ओर दीपस्तंभ रखते हैं। पूजन की थाली में सजाई सामग्री पूजा स्थान के समीप रखते हैं। हरितालि का पूजन के आरंभ में सर्वप्रथम स्त्रियां आचमन, प्राणायाम करने के उपरांत देशकाल कथन करती हैं। इसके पश्चात स्त्रियां संकल्प करती है।

मंत्र उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये

✓ अर्थात, श्री उमामहेश्वर से सायुज्य मुक्ति प्राप्त होने के लिए मैं यह हरितालि का व्रत करती हूं।

. इस दिन स्त्रियां नदी के तट पर जाकर अथवा उपलब्धि के अनुसार बहते एवं शुद्ध पानी की बालू अर्थात महीन रेत घर ले आती हैं।

. घर पर सजाए हुए देवतापूजन के स्थान पर इस रेत की शिवपिंडी बनाती हैं।

. आजकल नगरों में एवं बडे शहरों में मां पार्वती एवं उनकी सखी की, शिवलिंग के साथ मूर्तियां उपलब्ध हैं।

. मां पार्वती एवं सखी की मूर्तियों को घर में स्थापित कर, उनका पूजन किया जाता है।

. हरितालिका पूजन में बिल्वपत्र, अपामार्ग अर्थात चिचडा, पारिजात, करवीर अर्थात कनेर, अशोक इत्यादि सोलह प्रकार की पत्रियां शिवपिंडी पर चढाई जाती हैं।

. साथ ही स्त्रियां श्वेत पुष्प भी समर्पित करती हैं।

. गुड-खोपरा अर्थात जैगरी एंड कोकोनट कर्नल, दूध एवं उपलब्धता के अनुसार फल नैवेद्य स्वरूप निवेदित करती हैं।

. तदुपरांत देवी हरितालिका की आरती उतारती हैं।

. पूजन के उपरांत स्त्रियां भावपूर्ण प्रार्थना करती हैं। इस दिन पूजा के समय प्रज्वलित किया गया दीप विसर्जन के समय तक प्रज्वलित रखते हैं, उसे बुझने नहीं देते। इससे पूजक के भाव के अनुसार उसे शिव तत्त्व एवं तेज तत्त्व के लाभ होते हैं।

. सायं समय भी स्त्रियां देवी की आरती करती हैं तथा रात्रि के समय जागरण कर हरितालिका की कथा का श्रवण करती हैं।

अं. हरितालिका के दिन पूजन करने के साथ ही स्त्रियां दिनभर उपवास रखती हैं। उपवास करने का अर्थ है, अन्न ग्रहण न कर नामस्मरण करते हुए देवता से सतत संधान साधना।

: स्त्रियां जीवन में आनेवाले विघ्न दूर करने के लिए शिवजी से प्रार्थना करती हैं। भावपूर्ण प्रार्थना के कारण स्त्री की ओर शिव-शक्ति के प्रवाह आकृष्ट होते हैं तथा उसके भाव नुसार उसे लाभ मिलते हैं।

हरितालिका व्रत के दूसरे दिन की जाने वाली विधि:

स्त्रियां देवी की आरती करती हैं। देवी को दही एवं भात का नैवेद्य निवेदित करती हैं। तदुपरांत शिवपिंडी एवं सखी पार्वती की मूर्तियां जलस्रोत के पास ले जाती हैं एवं उन्हें बहते पानी में विसर्जित करती हैं। कुछ स्थानों पर हरितालिका के दूसरे दिन स्त्रियां यथाशक्ति एक, आठ अथवा सोलह दंपति को भोजन कराती हैं तथा उन्हें सौभाग्य द्रव्य भरे सुहाग पिटारों का दान देती हैं। इसके उपरांत स्वयं भोजन कर व्रत का समापन करती हैं।

संदर्भ: सनातन का ग्रंथ, ‘श्री गणपति’ एवं ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्म शास्त्रीय आधार’

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